बाकर अली
बनाते थे खड़ाऊँ
अयोध्या में ।
खड़ाऊँ जातीं थीं
मन्दिरों में
राम जी के
शुक्रगुज़ार थे बाकर अली ।
ख़ुश था अल्लाह भी ।
उसके बन्दे को
मिल रहा था दाना-पानी
नमाज और समाज
अयोध्या में ।
एक दिन
जला दी गई
बाकर मियाँ की दुकान
जल गईं खड़ाऊँ तमाम—
मन्दिरों तक जाना था जिन्हें
हे राम !