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सदस्य:Azad bhagat

जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

आज मैं बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

जज्बातों के कुछ बंधन है
जो देते मुझको उलझन है
उलझन में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

मैं भी कैसा दीवाना था
औरो में खुश रहता था
अपनों में बैठा तन्हा सा
जख्म ह्रदय के कुरेद रहा

--Azad bhagat 13:01, 12 अक्टूबर 2011 (CDT)आजाद भगत

न जाने क्यूँ

न जाने क्यूँ,
कभी आंसू बहाते है कभी वो खिल-खिलाते है ,
हमें हमसे चुराकर वो हम ही से रूठ जाते है ,
अधर से छेड़कर बाते वो नए किस्से बनाते है ,
करके इशारे निगाहों से हम ही को आज़माते है ,
न जाने क्यूँ.