चले गए घनपंखी दिन !
उतरी शहतीर आबनूसी
गिन-गिन कर सीढ़ियाँ समय की
जाड़े की धूप कुलवधू-सी
नदियों के लम्बे नाखून
छाँट गई रुई और ऊन
खिड़की पर आ कर आकाश
सुझा गया ढेरों मजमून
चप्पे भर हल्दी की थाप
फैल गई भीनी ख़ुशबी-सी।
चले गए घनपंखी दिन !
उतरी शहतीर आबनूसी
गिन-गिन कर सीढ़ियाँ समय की
जाड़े की धूप कुलवधू-सी
नदियों के लम्बे नाखून
छाँट गई रुई और ऊन
खिड़की पर आ कर आकाश
सुझा गया ढेरों मजमून
चप्पे भर हल्दी की थाप
फैल गई भीनी ख़ुशबी-सी।