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मोर पाँखें / ठाकुरप्रसाद सिंह

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मोर पाँखें, मोर पाँखें, मोर पाँखें

दिशाओं की!


हर नगर

हर गाँव पर

आशीष सी

झुक गईं आके

मोर पाँखें!

दिशाओं की!


गाँव के गोइड़े

खड़ा जोगी,

झुलाता झूल वासन्ती

मोरछल से झाड़ता

मंत्रित गगन की धूल वासन्ती

खुल गईं लो

खुल गईं

कब की मुंदी आँखें

दिशाओं की