ऋतुओं से नाता नहीं है प्रेम का
कि प्रेम अपने आप में अलग ऋतु है
सातवीं ऋतु है प्रेम
छहों ऋतुओं को समोये अपने आप में
प्रेम में ताप है
प्रेम में शीत
प्रेम में बयार है
प्रेम में वृष्टि,
प्रेम को फ़र्क नहीं पड़ता, न आँधी से, न पानी से,
भीति नहीं जानता प्रेम, न ओलों से, न पाले से,
उतना ही उद्दाम फूटता है, जितनी ज़्यादा विषम होती है
पारिस्थितिकी
अगर्चे देह में उमगता है हठात् रोमांच,
और मन की डार पर फूटता है अचानक बौर
तो समझ लो आ गई जीवन में
सातवीं ऋतु प्रेम की