Last modified on 5 मार्च 2012, at 12:04

रंग खोजती होली / संजय अलंग

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 5 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय अलंग |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मितान ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मितान !
इस बार होली आएगी कैसे?
उसे कैलेण्डर में खूनी लाल या
जली काली तारीख़ें ही मिलीं हैं

वह अब भी
बच्चे के हाथ में रंग की
सोच रही है

मैं सोचता हूँ
उसे, ख़ौफ हटाकर
शरारत दे ही दूँ

तुम भी दोगे क्या? या
उसे अब लौटा ही दें?