अनुभव
खड़े जब वारिद अनुभव में, विचारों की कर धारा है |
लहर जो लेता है उसकी, वही दुनियां से न्यारा है ||
भाव की नौका कर बैठे,पथिक सच्चे अरु स्याने हो |
कहो उस आनंद की सीमा, मिले जब दीवाने ही दो ||
रगड़ कर दूर हटाया है, जमा जो भ्रम रूपी मैला |
पथिक तो सब ही अच्छे हैं,खुला पर उसका ही गैला ||
किया स्नान ऐसा जो, विवेकी पहन कर वस्तर |
कहो शिवदीन वह प्राणी, जायेंगे क्यों न भव से तर ||
करे हद आनंद की बातें, मस्त बनकर मतवाले से |
राम रस का ये चस्का है,कम क्या मद के प्याले से ||
जिन्होंने मुक्ति का साधन, किया है जीते जी ऐसा |
मुक्ति जीवन में ही है, तरेगा मर कर फिर कैसा ||
समझलो सोचनीय बातें, सही ही जीवन में करता |
वही फल अक्षय है सच्चा,कर्म शुभ करके नर मरता ||
मिटा कर वासना दिल से, दूर से आशा जो त्यागी |
वही है भक्त निष्केवल, प्रभु का सच्चा अनुरागी ||
तडपना छोड़ दी जिसने, नहीं स्वारथ में जो रत है |
संत है महात्मा वही, अटल उसका ही तो मत है ||
बुरा करता ना कोई का, भला कोई ही करता है |
समझ कर बात ऐसी ही,समझ अपनी में धरता है ||
दया का भाव रख दिल में, विचरता भूमि के ऊपर |
क्षमा संतोष ही धन है, रहा इस प्राण पर ही निर्भर ||
कहो क्यों नां अपनाएंगे, दयालु भक्त वत्सल है |
उन्हीं के नाम पर मस्ता, किया मन को जो निश्छल है ||
कवि है पंडित है वह ही, वही है ज्ञानेश्वर ज्ञानी |
जिन्होंने मन को समझाया,ज्ञान जो आत्म का जानी ||
और सब भूले भटकाए, बिना मन के समझाने से |
ताल और लय से बाहर है,कहो क्या मतलब गाने से ||
बना मन में तो पंडित है,मगर ये मन तो शठ वोही |
कहो क्या होगा पढ़ने से, समय सब व्यर्थ ही खोई ||
रटना तोते की सी में, नहीं कुछ लाभ ही होता |
बिना जाने मनाने मन, मैल क्या भीतर से धोता ||
मिले जब सद्गुरु आकर के, भाग्य का खुलना ही जानू |
भरम के परदे फट जाते, सच्ची मुक्ति वह मानू ||
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