Last modified on 20 मार्च 2012, at 22:09

गुज़रे दिनों / अनिरुद्ध सिन्हा

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:09, 20 मार्च 2012 का अवतरण ('अनिरुद्ध सिन्हा गुज़रे दिनों की एक मुकम्मल क़िताब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अनिरुद्ध सिन्हा गुज़रे दिनों की एक मुकम्मल क़िताब हूँ पन्ने पलट के देखिए मैं इंकलाब हूँ

मुमकिन पतों के बाद भी पहुँचे न जो कभी वैसे ख़तों का लौट के आया जवाब हूँ

ऐसा लगा कि झूठ भी सच बोलने लगा पीकर न होश में रहे, मैं वो शराब हूँ

हद से कहीं हँसा न दें मेरी कहानियाँ इक मुख़्तसर-सी रात का नन्हा-सा ख़्वाब हूँ

माली ने ही सलीके से टहनी मरोड़ दी इल्ज़ाम सिर लगा मेरे, मैं तो गुलाब हूँ!