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शेर-15 / असर लखनवी

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(1)
यह महवीयत1 का आलम है, किसी से भी मुखातिब हूँ,
जुबाँ पर बेतहाशा2 आप ही का नाम आता है।

(2)
यह सोचते रहे और बहार खत्म हुई,
कहाँ चमन में आशियाना बने या न बने।

(3)
रहा है साबिका3 गम से यहाँ तक, हमनशीं4 मुझको,
खुशी के नाम से भी अश्क आँखों में भर आते हैं।

(4)
वह ताइरे-असीर5 कहाँ जायें क्या करें,
आजाद हो के जिसको नसीब आशियाँ न हो।

 
(5)
वह काम कर बुलन्द हो जिससे मजाके-जीस्त6,
दिन जिन्दगी के गिनते नही माहो-साल में।

(6)
यह भीगी रात और यह बरसात की हवाएं,
जितना भूला रहा हूँ, वह याद आ रही है।

1.महवीयत - तल्लीनता, किसी के ख्याल में खो जाना 2.बेतहाशा - बहुत अधिक 3.साबिका - सम्बन्ध, लगाव 4. हमनशीं - साथ बैठने वाला, मित्र सभासद, मुहासिब।5. ताइरे-असीर - (पिंजड़े में) कैद पंछी 6.मजाके-जीस्त - जीवन की रसिकता