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शेर-2 / सीमाब अकबराबादी

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(1)
कोई उल्फत1 का दीवाना, कोई मतलब का दीवाना,
यह दुनिया सिर्फ दीवानों का घर मालूम होती है।
 
(2)
खुदा और नाखुदा2 मिलकर डुबो दें यह तो मुमकिन है,
मेरी वजहे-तबाही सिर्फ तूफां हो नहीं सकता।

(3)
छीन ली फ़िक्र-ए-निशेमन3 ने मेरी आजादियाँ,
जज्बा-ए-परवाज4 महदूदे-5गुलिस्ताँ हो गया।
 
(4)
जवानी ख्वाब6 की-सी बात है, दुनिया-ए-फानी7 में,
मगर यह बात किसको याद रहती है, जवानी मे।

(5)
तअज्जुब8 क्या लगी गर आग 'सीमाब' सीने में,
हजारों दिल में अंगारे भरे थे, लग गई होगी।

(6)
नहीं मिलते तो इक अदना शिकायत है न मिलने की,
मगर मिलकर, न मिलने की शिकायत और होती है।

1.उल्फत - प्यार, मुहब्ब्त 2 नाखुदा - मल्लाह, नाविक, केवट, कर्णधार 3.फ़िक्र-ए -निशेमन - घोंसला या नीड की चिंता 4.परवाज - उड़ान 5.महदूद - सीमित6.ख्वाब - स्वप्न, सपना 7.फानी - नश्वर, नाशवान, मिट जाने वाला, न रहने वाला 8.तअज्जुब - आश्चर्य, विस्मय