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शेर-1 / अज़ीज़ लखनवी

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(1)
हिफाजत करने वाले खिरमनों1 के मुतमईन2 बैठें,
तजल्ली3 बर्क4 की महदूद5 मेरे आशियाँ तक है।
 
(2)
सुरूरे-शब6 की नहीं सुबह का खुमार7 हूँ मैं,
निकल चुकी है जो गुलशन से वह बहार हूँ मैं।


(3)
सितम है लाश पर उस बेवफा का यह कहना,
कि आने का भी न किसी ने इन्तिजार किया।

(4)
भला जब्त की भी कोई इन्तिहा है,
कहाँ तक तबिअत को अपनी संभाले।
 
(5)
विसाले-दायमी8 क्या है, शबे-फुर्कत9 में मर जाना,
कजा10 क्या है, दिली जज्बात11 का हद से गुजर जाना।

1.खिरमन - खलियान, भूसा निकाला हुआ या भूसा मिला हुआ अन्न का ढेर जो खलियान में रखा होता है 2. मुतमईन - (i) बेफिक्र, निश्चिन्त (ii) संतुष्ट, (iii) आनन्दपूर्वक, खुशहाल 3. तजल्ली - (i) रौशनी, प्रकाश, नूर (ii) तेज, प्रताप, जलाल 4. बर्क - (i) बिजली, चपला, तड़ित (ii) विद्युत, प्रयोग में आने वाली बिजली,

5. महदूद -  सीमित 6.सुरूरे-शब-  रात का चढ़ता हुआ नशा 

7. खुमार - सुबह का उतरता हुआ नशा। 8.विसाले-दायमी - न खत्म होने वाला मिलन 9.शबे-फुर्कत - विरह की रात 10.कजा - मौत 11.जज्बात - भावना