Last modified on 25 मार्च 2012, at 12:10

पीडा / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 25 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन प्रियदर्शिनी |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


अभी भी कोई
मेरी टहनियो
को भीतर से
गिलहरियो की
तरह
कुटकुटाता है ..
टटहरी की तरह
कोई खाता रहता है
अंदर ही अंदर ....
रेत देता है
रोज मेरा पोर पोर ...
सदियो से पिरा
जखम
अंदर ही अंदर
रिस्ता है .....
बहुत सम्भाला
बहुत ढका
पर फिर भी
उधड उधड
जाता है