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पांव / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

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बैठ कर
सोचना होगा
इन हवायो के
बीच से
निकलने की
कोई राह ...
पेडो के उत्तंग सिर
झेल लेते है
कैसे भी तुफान
दरिया के किनारे
खडे रहते है
अडिग
हिमालय सा
सिर ताने .....
निकालनी हो गी
मुझे कोई राह
इन रेत के ढूहओं
मे से ...
इन मिटते -बनते
पावो के
चिन्हो पर
मील पत्थर
से रख कर
अपने पांव