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चलना / सुदर्शन प्रियदर्शिनी

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चलती हूँ

चलती रहूंगी

शायद -कहीं

भी न पहुचने

के लिए  ...

 

क्या पहुंच

पाए कहीं

जो चलते रहे  ?

हर चोराहे पर

स्टॉप साईन था

रुकना पड़ा ...

 

फिर भी

लाँघ कर

सब - कुछ

पवन के -झोंके

चले -

उषा की

पाहुणी- ज्योति

चली ....

 

और पहुंच गई

हर मरुस्थल .... !