बिटिया चाहती है
कि पोछ दे
पिता का पसीना।
और मां के दुखों को
देवे एक छप्पर।
जिसकी गुनगुनी धूप में
सूखती बडिय़ों से
सूख जाएं सारे दुख।
इसलिए सजती है
बार-बार।
और ड्राइंगरूम में
बैठे मुखौटे
परखते हैं उसे,
फिर बढ़ जाते हैं आगे
बेहतर वस्तु की
तलाश में।