Last modified on 25 मार्च 2012, at 14:03

गुडिय़ा (4) / उर्मिला शुक्ल


उसने किया है फैसला
कि नहींबानएगी अब
कोई गुडिय़ा
वह तो बनाएगी एक चिडिय़ा
जो नाप सके
सारा आकाश
आंखो में उतरती
निलिमा के बीच
उगने लगे बाज
क्षण भर को
थरथरा उठी उंगलियां
फिर भी वह बना रही है चिडिय़ा
जिसे लडऩा है
बाजों और बहलियों से।