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महक फूलों की / सरस्वती माथुर

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बसंत के आते ही
मैं भर लाती हूँ
अपनी सहज अनुभूति के आँचल में
महक फूलों की
बसंत के आते ही
मैं मंडराती हूँ
उन पर तितली-सी
गुनगुन करती
मैं काव्य रूप के पुष्प भी
बिन लाती हूँ
राग, रंग, छंदों के
ललछौने बासंती मौसम की
देहरी के द्वार खोल
मैं जब तब
सृजन के क्षण भी
चुन लाती हूँ
सच पूछो तो
मेरे मन के गुलशन
अपने आप में
राग, रंग, छंदों के
फूलों से
महके वातास हैं
बासंती मौसम में
सुगंधित मधुमास हैं