Last modified on 27 मार्च 2012, at 08:33

आगाही / सरस्वती माथुर

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:33, 27 मार्च 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरस्वती माथुर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक चट्टान

अब लौटते हैं चलो
सब कुछ खोकर
आत्म चैतन्य के प्रकाश में
क्योंकि हमें
ज्ञान है
दूर मन के बीचों बीच
उतरने के लिए
एक चट्टान है।