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आदमी ज़िन्दगी जीने को
शिद्दत से बड़ा प्यासा था
इस प्यास के संग चलता
ज़िन्दगी का पानी खोजता-तलाशता
वह एक चश्मे तक पहुँच गया
प्यास इतनी थी
कि वह न देख सका, न पहचान सका
कि यह ज़िन्दगी का चश्मा नहीं
वह तो प्यासे पानी का चश्मा था
प्यास बुझाने को जब वह
पानी के करीब गया
प्यासे पानी ने आदमी को पी लिया...
मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव