Last modified on 2 अप्रैल 2012, at 00:58

रागरंग / उत्‍तमराव क्षीरसागर

Uttamrao Kshirsagar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 2 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


राजा था
बेलबुटों की बुनावट से सजा-धजा महल था
रुत थी मौसम था
वाहवाही थी
साथ-साथ राजा के वाहवाह करनेवालों की


साज थे
फि‍ज़ा में ढलती मौसि‍की थी
गान था
अपनी लय में चढती-उतरती तान थी
नृत्‍य था
अपनी तमाम मुद्राओं में मृदुल नुपूर-नाद लि‍ए


राजा के फ़रमान से
सजी तो थी महफ़ि‍ल मगर
साजिंदें नहीं थे
गायक नहीं था
नर्तकी नहीं थी


कला के पाखंडी उत्‍सव में
उपस्‍थि‍त नहीं थीं उनकी आत्‍माएं
वे तो उनके बुत थे
जि‍न पर अटकी हुई थीं सबकी आंखें