Last modified on 2 अप्रैल 2012, at 01:53

सबब / उत्‍तमराव क्षीरसागर

Uttamrao Kshirsagar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 2 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उत्‍तमराव क्षीरसागर |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


आज़ाद औरतें जानती हैं
कि
वाक़ई कि‍तनी आज़ाद हैं वे

वे जानती हैं अपने जि‍स्‍म और रूह के दरमि‍यान
भटकते-फटकते शरारती फौवारें

उन्‍हें मालूम है उनके तन और मन के बीच
आज़ादी की कि‍तनी पतली धार है

फासलों की बात अगर छोड भी दें तो
वे जानती हैं बातों के छूट जाने का सबब