शरीर में दिल है
सो धड़कता है
मगर इन दिनों
वज़ह दूसरी है
धरती पर कोई है
जिसके होने की आहट से
यह धड़कने लगता है
क्या अब ऐसा होगा
कि शरीर न हो तो भी चलेगा
दिल अब किसी दूसरी
और शरीर से कुछ अधिक प्रिय वज़ह से धड़केगा
मैं अपने भीतर
और अपने से बाहर
और अपने आप ही
एक घोंसला बुनने लगा हूँ
जिसमें यह दूसरी वज़ह से धड़कने वाला दिल
और इसके धड़कने की वज़ह
दोनों महफू़ज़ रह सकें
मैं घोंसला बुन रहा हूं यह जानते हुए भी
कि घोंसलों को आँधियाँ बखेर देती हैं
आज यह पूरे दिन उसी दूसरी वज़ह से धड़कता रहा है
शरीर का इसने पानी भी नहीं पिया है
डर भी रहा हूँ कि कल को यह दूसरी वज़ह
रूठ जाए तो क्या होगा इस नाज़ुक का
शरीर में यह लौट नहीं पाएगा
बाहर यह बच नहीं पाएगा
स्मृतियाँ रह जाएँगी केवल
स्मृतियाँ जो जिन वज़हों के लिए बनती हैं
उन वज़हों के मिटने पर बनती हैं
यही वज़ह है शायद
सबसे मीठी स्मृतियों का रंग
सबसे ज़्यादा उदास होता है
देखो उदासी के उस रंग ने
कितना अपने में डुबो लिया है उस दिल को
जिसका धड़कना शुरू होना
दो दिन पहले की बात है