मृत्यु से बहुत डरने वाली बुआ के बिल्कुल सामने आकर बैठ गई थी मृत्यु
किसी विकराल काली बिल्ली की तरह सबको बहुत साफ़ दिखाई
और सुनाई देती हुई
मगर तब भी, अपनी मृत्यु के कुछ क्षण पहले तक भी
उतनी ही हँसोड़ बनी रही बुआ
अपने पूरे अतीत को ऐसे सुनाती रही जैसे वह कोई लघु-हास्य नाटिका हो
यह एक दृष्यांश ही काफ़ी होगा — जिसमें बुआ के देखते-देखते निष्प्राण हो गए फूफा
गाँव में कोई नहीं था
पक्षी भी जैसे सबके सब किसानों के साथ ही चले गए गँव खाली कर खेतों और जंगल में
कैसा रहा होगा पूरे गाँव में सिर्फ एक जीवित और एक मृतक का होना
कैसे किया होगा दोनों ने एक दूसरे का सामना
इससे पहले कि जीवन छोड़े दे
मरणासन्न को खाट से नीचे उतार लेने का रिवाज है
बुआ बहुत सोचने के बावजूद ऐसा नहीं कर सकी
अकेली थी
और फूफा, मरने के बाद भी उनसे कतई उठने वाले नहीं थे
जाने क्या सोच बुआ ने मरने के बाद खाट को टेढ़ा कर
फूफा को ज़मीन पर लुढ़का दिया
अब रोती तो कोई सुनने वाला नहीं था
बिना सुनने वालों के पहली बार रो रही थी वह जीवन में
इस अजीब सी बात की ओर ध्यान जाते ही रोते-रोते हँसी फूट पड़ी बुआ की
बुआ जीवन में रोने के लम्बे अनुभव और अभ्यास के बावजूद
चाहकर भी रो न सकी
मृतक के पास वह जीवित
बैठी रही सूर्यास्त की प्रतीक्षा करती हुई
इस तरह जीवन को चुटकलों की तरह सुनाने वाली बुआ के जीवन का चुटकला
पिच्चासी वर्ष की बख़ूब अवस्था में जब पूरा हो गया
कुछ लोग हँसे, कुछ ने गीत गाए,कुछ को आई रुलाई
बूढ़ी बुआ हमारे जीवन में अभी भी है
उतनी ही अटपटी, उतनी ही भोली, उतनी ही गँवई
मगर खेत की मेड़ के गिर गए रूँख-सी
कहीं भी नहीं दिखाई देती हुई
यह बात भी अब तो चार बरस पुरानी हुई
चार बरस पहले
एक सुख था जीवन में