Last modified on 12 अप्रैल 2012, at 17:54

रात / मंगलेश डबराल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 12 अप्रैल 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत देर हो गई थी
घर जाने का कोई रास्ता नहीं बचा
तब एक दोस्त आया
मेरे साथ मुझे छोड़ने

अथाह रात थी
जिसकी कई परतें हमने पार कीं
हम एक बाढ़ में डूबने
एक आँधी में उड़ने से बचे
हमने एक बहुत पुरानी चीख़ सुनी
बन्दूकें देखीं जो हमेशा
तैयार रहती हैं
किसी ने हमें जगह जगह रोका
चेतावनी देते हुए
हमने देखे आधे पागल और भिखारी
तारों की ओर टकटकी बाँधे हुए

मैंने कहा दोस्त मुझे थामो
बचाओ गिरने से
तेज़ी से ले चलो
लोहे और ख़ून की नदी के पार

सुबह मैं उठा
मैंने सुनी दोस्त की आवाज़
और ली एक गहरी साँस ।

(1989)