आजकल मैं /
एक ही बिम्ब में /
सब कुछ देखता हूँ /
एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को /
समुद्र और तालाब को /
मगर आदमी /
मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है /
पता नहीं क्यों /
आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?
आजकल मैं /
एक ही बिम्ब में /
सब कुछ देखता हूँ /
एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को /
समुद्र और तालाब को /
मगर आदमी /
मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है /
पता नहीं क्यों /
आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?