Last modified on 19 अप्रैल 2012, at 21:58

आदमी / कुँअर रवीन्द्र

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 19 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर रवीन्द्र }} {{KKCatKavita‎}} <poem> आजकल मै...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आजकल मैं /
एक ही बिम्ब में /
सब कुछ देखता हूँ /
एक ही बिम्ब में ऊंट और पहाड़ को /
समुद्र और तालाब को /
मगर आदमी /
मेरे बिम्बों से बाहर छिटक जाता है /
पता नहीं क्यों /
आदमी बिम्ब में समा नहीं पता है ?