ब्रितानी लेखिका
(२२ अक्तूबर १९१९) २००७ में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली ब्रितानी लेखिका हैं। उन्हें यह पुरस्कार अपने पाँच दशक लंबे रचनाकाल के लिए दिया गया। महिला, राजनीति और अफ़्रीका में बिताए यौवनकाल उनके लेखन के प्रमुख विषय रहे। १९०१ से प्रारंभ इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाली लेसिंग ११वीं महिला रचनाकार है। ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य रह चुकी डोरिस ने हंगरी पर रूसी आक्रमण से व कार्यप्रणाली व नीतियों से क्षुब्ध होकर १९५४ में पार्टी ही छोड़ दी थी। अपने आरम्भिक दिनों में उन्होंने डिकेंस, स्कॉट,स्टीवेन्सन, किपलिंग, डी.एच. लोरेन्स, स्टेन्थॉल, टॉल्स्टॉय, दोस्तोवस्की आदि को जी भर पढ़ा। अपने लेखकीय व्यक्तित्व में माँ की सुनाई परीकथाओं की बड़ी भूमिका को डोरिस रेखांकित करती हैं।[1] प्रथम विश्वयुद्ध में अपंग हो चुके पिता की स्मृतियाँ उनके अन्तस में आज भी ताजा हैं।
डोरिस लेसिंग
माता-पिता दोनों ब्रिटिश थे। पिता पर्शिया के इम्पीरियल बैंक में क्लर्क व माँ एक नर्स थीं। १९२५ में परिवार (आज के) जिम्बाब्वे में स्थानांतरित हो गया। जिन सपनों को लेकर वे यहाँ आए थे- वे चकनाचूर हो गए। लेसिंग के अनुसार उनका बचपन सुख व दु:ख की छाया था,जिसमें सुख कम व पीड़ा का अंश ही अधिक रहा। अपने भाई हैरी के साथ प्राकृतिक जगत के रहस्यों को सम्झने-बूझने में लगी लेसिंग को अनुशासन, घरेलू साफ़-सफ़ाई व घरेलू तथा सामान्य लड़की बनाने आदि के प्रति माँ बहुत सतर्क व कठोर रहीं। १३ वर्ष की आयु में लेसिंग की विधिवत शिक्षा का अंत हो गया । किंतु ये अन्य दक्षिण अफ़्रीकी लेखिकाओं की भाँति न रहकर शिक्षा से वहीं विरत नहीं हो गईं अपितु स्वयं ही शिक्षार्जन की दिशा में बढ़ती रहीं । अभी पिछले दिनों दिए गए इनके एक वक्तव्य के अनुसार- "दु:खी बचपन 'फ़िक्शन"(लेखन) का जनक होता है, मेरे विचार से यह बात सोलह आने सही है"। १९ वर्ष की आयु में १९३७ में सैलिस्बरी आने पर टेलीफ़ोन ऑपरेटर के रूप में भी इन्होंने कार्य किया। यहीं इनके दो विवाह हुए। पहला १९३९ में फ़्रैन्क विज़डम से, जिससे इन्हें दो बच्चे हुए। किन्तु यह सम्बंध चार वर्ष ही रहा और १९४३ में तलाक हो गया। दूसरा विवाह एक जर्मन राजनैतिक कार्यकर्ता गॉटफ्रीड लेसिंग से किया जिसकी परिणति भी १९४९ में तलाक के रूप में हुई। इस विवाह से हुए एकमात्र बेटे को लेकर ये ब्रिटेन आ गई थीं।
साहित्यिक जीवन
डोरिस लेसिंग के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ १९४९ से माना जा सकता है जब वे दूसरे विवाह से हुए बेटे के साथ १९४९ में लंदन पहुँचीं। उनका पहला उपन्यास "द सिंगिंग ग्रास" इसी वर्ष प्रकाशित हुआ और यहीं से विधिवत इनके लेखकीय जीवन की शुरुआत हुई। इनका साहित्य अधिकांश अपने अफ़्रीकी जीवनानुभवों से जुड़ा है, जिसमें बचपन की स्मृतियाँ, राजनीति से जुड़ाव व समाज-संलग्नता ही अधिकांश है। सांस्कृतिक टकराव, जड़ों में जमा अन्याय, वर्णभेद, आत्मद्रोह, आत्मद्वन्द्व की स्थितियाँ इनके साहित्य में बहुतायत से हैं। दक्षिण अफ़्रीका में श्वेत उपनिवेशवाद के प्रति असहमत लेखन के कारण १९५६ में इन्हें वर्जित लेखक तक घोषित कर दिया गया। उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, एकांकी, आदि विधाओं के अतिरिक्त भी इन्होंने लिखा है।
पुरस्कार सम्मान
"अंडर माई स्किन:वोल्यूम वन ऑफ़ माई आटोबायोग्राफ़ी टू१९४९" (१९९५ में प्रकाशित) के लिए इन्हें 'जेम्स टैईट ब्लैक प्राईज़' से सम्मानित किया गया। १९९५ में हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इन्हें ऒनरेरी डिग्री प्रदान की। इसी वर्ष ये ४० वर्ष बाद पुन: दक्षिणी अफ़्रीका गईं और बेटी व नाती-पोतों से मिलीं। ४० वर्ष पूर्व जिस लेखन के लिए इन्हें प्रतिबन्धित व निष्कासित किया गया था, उसी लेखन के कारण इस बार इनका वहाँ गर्मजोशी से स्वागत-सत्कार किया गया । १९५४ से २००५ तक देश-विदेश में अपने साहित्य व लेखन पर मिले अनेक प्रतिष्ठित सम्मानों व पुरस्कारों की शृंखला में २००७ का 'नोबेल' साहित्य पुरस्कार इस वर्ष इन्हें मिला है। इनका नवीनतम उपन्यास है - " द क्लेफ्ट" | जिसका कथानक समुद्र के किनारे रहने वाले स्त्री-समुदाय ‘क्लेफ़्ट’ पर केन्द्रित है। आज भी वे निरन्तर जागरूकता से लिख रही हैं व इतना ही नहीं वे अपने ब्लॉग[2] पर भी लोगों से लगातार सम्पर्क में हैं।