गुंटर ग्रास गुंटर ग्रास का जन्म सन् १९२७ में १६ अक्टूबर को पूर्वी जर्मनी के बाल्टिक बंदरगाह दान्जिग में हुआ, जो अब पोलेंड़का शहर बन चुका है और 'ग्दान्स्क' के नाम से जाना जाता है। उनके जर्मन पिता की किराने की दुकान थी और वे छोटे-मोटे अफसर भी थे। उनकी मां स्लाव थीं। उनकी स्कूली शिक्षा दान्जिग में ही हुई। बचपन में ही उन्होंने चित्र बनाने शुरू कर दिए। अपना पहला उपन्यास उन्होंने १३ वर्ष की उम्र में एक प्रतियोगिता के लिए लिखा। दान्जिग पर जर्मन कब्जे के बाद वे पहले 'नाजी युवा आंदोलन' में और बाद में 'हिटलर यूथ' में शामिल हो गए। १६ वर्ष की उम्र में वे फौज में बुला लिए गए। १९४५ में वे युद्ध में घायल हो गए। मेरीनबाद में स्वास्थ्य लाभ के बाद वे अमेरिकी सेनाओं द्वारा पकड़लिए गए और उन्हें बावेरिया में युद्धबंदी बनाकर रखा गया। अगले कुछ साल उन्होंने पश्चिमी जर्मनी के विभिन्न हिस्सों में, खेतों में मजदूरी करके और पोटाश की खानों में काम करके बिताए। फिर उन्होंने अपनी अधूरी पढ़ाई, पुनः शुरू करने की कोशिश की लेकिन नाकामयाब रहे और कभी दसवीं पास नहीं कर पाए। पढ ाई छोड़कर वे डुस्सेलडोर्फ में एक संगतराश के शागिर्द बन गए। वे स्थानीय कंपनियों के लिए कब्रों के पत्थर तराशते थे। १९४९ में उन्हें डुस्सेलडोर्फ कला अकादमी में दाखिला मिल गया। दिन में वे चित्र और मूर्तिकला सीखते थे और शाम को जाज संगीत के कार्यक्रमों में 'ड्रम' बजाया करते थे। इटली और फ्रांस की सैर करने के बाद, १९५३ में वे पश्चिम जर्मनी में बस गए। पहला साहित्यिक पुरस्कार उन्हें कविताओं के लिए १९५५ में मिला। उनके तीन कविता संग्रह क्रमशः १९५६, १९६० और १९६१ में प्रकाशित हुए। कविता संग्रहों, नाटकों और उपन्यासों के अलावा उनके राजनीतिक भाषण पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित हो चुके हैं। 'द टिनड्रम' (१९५९), 'कैट एण्ड़माऊस' (१९६१), 'डॉग इयर्स' (१९६३), 'लॉकल एनेस्थैटिक' (१९६९), 'द प्लेबियन्स रिहर्स अपराइजिंग' (१९६६), 'द फ्लाउंडर' (१९७७), 'डायरी ऑव ए स्नेल', 'वाइड़फील्ड़', 'द मीटिंग ऐट टेलगेट' (१९७९), 'इन द एग एण्ड़अदर पोयम्स' (१९७७), 'हेडबर्थ्स' या 'द जर्मन्स आर डाइंग' (१९८३), 'ऑन राइटिंग एण्ड़पॉलिटिक्स' (१९६७-१९८३) आदि अनेक पुस्तकों के लेखक गुंटर ग्रास की उल्लेखनीय कृतिः 'माइ सेंचरी' (१९९९) में प्रकाशित हुई। इसमें सौ कहानियां संग्रहित की गई हैं जिनमें पिछले सौ वर्ष पसरे हुए हैं। उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियां हैं- 'टू फार एफील्ड़' (२०००), डम्मर ऑगस्ट (२००१) और पीलिंग द अनियन्स (२००८)। 'टीन का ढोल' ग्रास की सर्वश्रेष्ठ कृति है। १९५९ में, इस उपन्यास के छपने से जर्मनी में तहलका मच गया। जर्मनी में ३०,००० और अमेरिका में पांच लाख प्रतियां तुरंत बिक गईं। सन् २००० तक इसकी ४० लाख प्रतियां बिक चुकी थीं। फिल्म निर्देशक वोल्कर श्लोनडोर्फ ने इस पर १९७९ में फिल्म बनाई जिसे ऑस्कर पुरस्कार मिला।
इस उपन्यास का मुख्य मात्र ऑस्कर मात्सेराठ एक बच्चा है जो अपने तीसरे जन्मदिन पर यह निर्णय लेता है कि 'बड़ा' न हुआ जाए। विकसित होने से यह इंकार हिटलर के शासन में जर्मनी की नियति का प्रतीक तो था ही, जर्मनी के कलाकारों की असमर्थता को भी रेखांकित करता था। तीन साल का बालक ऑस्कर केवल अपने खिलौने 'ढोल' के माध्यम से ही संप्रेषण करता है और संवाद स्थापित करता है। कथानक का आधार लेखक का अपना बचपन है जो दान्जिग में बीता था। उपन्यासमें शहर दान्जिग की बर्बादी का चित्रण, नाजीवादी दौर के बर्बरतम रूप से हमारा साक्षात्कार कराता है। इस उपन्यास में किए गए नाजियों के चित्रण को लेकर भारी हंगामा हुआ। कुछ लोगों ने इस उपन्यास को महान कृति कहा तो कुछ ने इस पर अश्लीलता और अनैतिकता के आरोप भी लगाए। बाद में अपने दो अन्य उपन्यासों- 'केट एण्ड़माऊस' तथा 'द डॉग इयर्स' के जरिए ग्रास ने नाजीवादी दौर की अमानवीयता और क्रूरता के विभिन्न पक्षों को गहरी कलात्मक संवेदना के साथ प्रस्तुत किया। ये तीनों उपन्यास दान्जिगत्रयी के नाम से विखयात हैं।उपन्यास-त्रयी में व्याप्त, नाजीवाद के उत्कर्ष, युद्ध की त्रासदी और हिटलर के अवसान के बाद पैदा हुआ अपराध बोध पाठक को निरंतर हांट करता रहता है। हाल ही में ग्रास ने इस अपराधबोध का जिक्र करते हुए माना कि जर्मनी के लिए इस अपराधबोध से मुक्त हो सकना संभव नहीं किन्तु साम्राज्यवादियों और उपनिवेशवादियों ने भी अपने उपनिवेशों के बाशिंदों पर कम अत्याचार नहीं किए और समय आ गया है कि उन्हें अपने कुकृत्यों के लिए शर्मिन्दा होना और प्रायश्चित करना चाहिए। उनका घर बेहलेन्डोर्फ में है मगर दान्जिग उनके साहित्यकार का शरण स्थल है।