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बूढ़े आदमी से उम्मीद / प्रमोद कुमार शर्मा

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मुझे सिर्फ एक ऐसे बूढ़े आदमी से उम्मीद है
जो अपने कर्मों की पोटली से
विदा कर चुका है सारे पापों को
बूढ़ा-
जो अपने सिर पर गृहस्थी का
बोझ उठाए पृथ्वी के लिए
विलाप बनकर नहीं जीना चाहता
जिसके हाथों में हो माला के
घूमते मनकों की भली-सी खिलखिलाहट
उसकी आँखों में छुपा हो
रहस्य वह आदिम जिसके चलते ही
रहना चाहता है जीवित कोई
चिडिय़ों के गुनगुने गीतों के गूढ़ अर्थ
खोजता हो वह अपने सूने एकांत में
और धर देता हो फिर उस अर्थ को
रामायण की चौपाई में
अपने दुख किसी पुराने के साथ
अपनी बंडी की जेब में
रखता हो वह बच्चों के लिए गुड़ से बनी
टॉफियाँ सस्ते वाली और बात करना चाहता हो
हर उस शरीफ आदमी से-
जो उसका गिरेबाँ नहीं पकड़े।
मुझे उम्मीद है सिर्फ एक ऐसे बूढ़े से
जो अभी बूढ़ा नहीं हुआ हो।