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गठरी / कमलेश्वर साहू

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पुरूष की तमाम प्रताड़नाओं के बाद भी
बची हुई थी स्त्रियां
और दुनिया की अंतिम स्त्रियां नहीं थीं
ऐसी ही बची हुई स्त्रियों में से
एक स्त्री के पास
दुख की गठरी थी
दूसरी के पास
सुख की
दोनों एक दूसरे को
जानती भी नहीं थीं पहले से
इसे संयोग ही कहें
कि राह चलते
टकरा गईं आपस में
पेड़ के नीचे
स्त्रियां थीं
तो बतियाने का मन हुआ उनका
वे बतियाने लगीं आपस में
परिचय बढ़ा
तो एक अपनी
दुख की गठरी खोल दी
दूसरी ने सुख की
जब वे उठकर जाने लगीं
तो दुख की गठरी हल्की हो चुकी थी
और सुख की गठरी भारी
आपको बेहद आश्चर्य होगा जानकर
जब वे दोनों लौटीं
अपने अपने रास्ते
बेहद खुश थीं
खुश खुश लौटीं !