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गरीबी / हेमन्त गणेश

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बरसाती मौसम में
धीरे-धीरे बादल
बरसता है मेरी छत से
जब मैं भोजन पर बैठता हूँ।

टप...गिरता है पानी
मेरे सिर पर.....और.....
अपनी थाली लिए
सिमट जाता हूँ एक कोने में।

दाल के बिना भी
फुल जाती है रोटी मेरी
और भुनी हुई अरबी में
शोरबा पड़ जाता है।

अँधेरी रात देखकर
टिमटिमाता दीया बुझ जाता है
पर ये आँखें....
टकटकी लगाए रहती है।

चाँद आता है कभी
कभी तारे आते जाते हैं
सुनकर वे भी चले आते हैं
मेरे जीवन की अद्भुत कहानी।