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एक रात / कंस्तांतिन कवाफ़ी

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कमरा सस्ता और गंदला था ।
जारज शराबख़ाने ऊपर छिपा ।
खिड़की से तुम गली देख सकते थे
सँकरी और कूड़े-कचरे से भरी ।
नीचे से आती कुछ कामगारों की आवाज़ें ।
पत्ते खेलते और शराब के दौर चलते हुए ।

और वहाँ काफ़ी बार बरते, निचले बिस्तर पर
मेरे पास प्यार की देह थी, मेरे पास होंठ थे,
आनन्द के गुलाबी होंठ और विलासभरे...
गुलाबी होंठ ऐसे आनंद के, कि अब भी
ज्यों ही मैं लिखता हूँ, इतने बरसों बरस बाद !
अपने अकेले घर में, फिर से हूँ धुत्त नशे में ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : पीयूष दईया