स्मृति के आकाश पर
अब भी
एकाध भटक हुआ बवण्डर
मंडराता है
याद के पेड पर
कुछ पत्तियाँ
अब ही मौजूद हैं
जिन्हें तेज-से-तेज आंधी भी
झकझोर कर
उड़ा नहीं पाई
स्मृति के आकाश पर
अब भी
एकाध भटक हुआ बवण्डर
मंडराता है
याद के पेड पर
कुछ पत्तियाँ
अब ही मौजूद हैं
जिन्हें तेज-से-तेज आंधी भी
झकझोर कर
उड़ा नहीं पाई