Last modified on 22 मई 2012, at 23:18

बारिश-8 / पंकज राग

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 22 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज राग }} {{KKCatKavita‎}} <poem> वह धूप के साथ-स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह धूप के साथ-साथ आई थी
वह दो रंगों का एक साथ आगमन था
उसने सड़कों के गड्ढे नहीं भरे
उसने पीली उड़ती धूल को एक लिजलिजी कत्थई रंगत में दबा दिया
उसने क्यारियों को फूलों की कल्पना दी
खाली जगहों को मखमली घास के सपने दिखाए
पक्के मकानों को सींचा
और पक्की दुकानों वाले बाज़ार को राहत दी

उसने हवाओं के साथ दोस्ती से परहेज़ किया
खुली हुई छतरियों को थपथपाया
बड़े-ब्ड़ों के चश्मे के काँच को आहिस्ता से सहलाते हुए
उनकी आँखों के रहस्य में झाँकने की कोशिश की
और सन्तुष्ट होकर
पकौड़े वालों की कड़ाही के तेल के साथ चटखारे लेते हुए
सुस्वादु अनुभूतियों का खेल भी खेला

वह एक मध्यवर्गीय बारिश थी
उसने मौसम नहीं बदले
खुदाई की ज़मीन से ऊपर ही ऊपर
उसने ख़ुदा को आश्वस्त किया