Last modified on 24 मई 2012, at 12:07

छाता / अशोक वाजपेयी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:07, 24 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी }} {{KKCatKavita}} <poem> छाते से बा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छाते से बाहर ढेर सारी धूप थी
छाता-भर धूप सिर पर आने से रुक गई थी
तेज़ हवा को छाता
अपने-भर रोक पाता था
बारिश में इतने सारे छाते थे
कि लगता था कि लोग घर बैठे हैं
और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं
अगर धूप, तेज़ हवा और बारिश न हो
तो किसी को याद नहीं रहता
कि छाते कहाँ दुबके पड़े हैं