Last modified on 24 मई 2012, at 12:20

धुआँ / मलय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 24 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मलय }} {{KKCatKavita‎}} <poem> धुआँ अपनी ही मंशा म...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धुआँ
अपनी ही मंशा में
तत्क्षण,
उठता है ऊँचा
आकाश में
छितरा जाता है

महत्वाकांक्षा
पल भर में
ऊपर उठने की
बस तमाशे की तरह
तमाम हो जाती है
अपने ही फल के
पहले ही
उसका फूल तोड़ खाती है ।