Last modified on 25 मई 2012, at 13:08

आवाज-दो / कमलेश्वर साहू

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 25 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश्वर साहू |संग्रह=किताब से निक...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


सर्दी के मौसम की एक दोपहरी
जबकि धूप तब रेशमी थी
थी नटखट गुनगुनी मुलायम
एक कांपती सी आवाज मुझे चौकाती है
मेरे फोन पर
सुखद आश्चर्य से भर जाता हूं मैं-
वह मेरी कल्पनाओं की आवाज थी
मेरे देखे हुए सपनों की आवाज
बहुत पहले कहीं खो गई आवाज थी वह
जिसके साथ जीने की
इच्छा पल रही थी मेरे मन में
उस आवाज से बहुत दूर था मैं
मगर वह मेरे इतने पास थी
कि उसकी गर्म सांसें
गिर रही थीं मेरे गाल पर !