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हर तरफ़ उनके तहलके हैं / पुरुषोत्तम प्रतीक

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हर तरफ़ उनके तहलके हैं
फ़ायदे ये भी पहल के हैं

कौन ज़िन्दा है यहाँ अब तो
मौत के घर ये दहलके हैं

बाढ़ में तो बस्तियाँ डूबीं
और चर्चे जलमहल के हैं

ज़िन्दगानी तक पहुँच पाना
काम क्या इतने सहल के हैं

ढूँढ़ अफ़साने कई होंगे
शेर ये भी तो ग़ज़ल के हैं