रोटी का स्याह पक्ष ही
देखा है उन्होने ।
जला हुआ,
महकविहीन ।
जंगल से आग तक
प्रेम से प्यास तक का
विचलित कर देने का सफ़र है उनका ।
सब जानते है
उनके समानांतर एक भूखी-पीढ़ी चल रही है ।
कड़ी धूप में नंगे-पाँव ।
लम्बे सफ़र के बाद
बची-खुची हिम्मत के साथ
वे हादसों की तह में उतरते हैं ।
उस जीवन के विरूद्ध नहीं
फिर भी वे
जिसने उन्हें हर क़दम पर छकाया है ।
वे कब इतिहास में अपना क़दम रखते हैं
कब वर्तमान में अपनी सिकुड़ी हुई जगह बनाते हैं।
अनिश्चित भविष्य में भी अपने होने का प्रबल दावा रखते हैं ।
इंसानियत की पहल पर ऊँचा मचान तैयार करते हुए
लगातार धरती पर नज़र टिकाए हुए ।
दुनियावी शऊर से कोसों दूर