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विवाह / नंद चतुर्वेदी

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थोड़े समय बाद लड़की इस घर से चली जाएगी
पड़ौस की स्त्रियाँ उसके साथ मोह से बँधी हैं
नीम और पीपल की छाया के नीचे चलती
वह एक चकित हिरनी की तरह
आयु की छंलाग भरकर
आगे बढ़ गयी है

लड़का उन्मत्त नदी की तरह
लड़की के पास है
सारी ऋतुओं के फूल उसकी जेब में हैं
पार कर लेगा वह
जेठ-वैशाख की उमस-आँधी
सावन भादों की अटूट मूसलाधार वर्षा
पौष-माघ का प्राणों को ठिठुरा देने वाल
क्रुर हिमवात
हजारों विपत्तियाँ, उतार-चढ़ाव

लड़की-लड़के को देखती नहीं है
पर्दा नहीं है
पके धान की तरह
उसकी हथेली है
छोटे-छोटे पैरों से वह दूर तक गयी है
फिर जाएगी डरेगी नहीं
जन्म देगी अपने शरीर आत्मा के भीतर से
समयातीत समय को
यह समय होगा लड़का या लड़की

इस मिट्टी की सरसता से जिन्हें डर है
डरते हैं जो ज़िन्दगी की परिक्रमा से
नया समय जिनकी हथेली में चुभता हो
वे अपनी देहली लाँघें
देखें, डरें नहीं
बिल्कुल नहीं
लड़की अपने छोटे पैरों से चली गयी है
लड़का उसे जानता नहीं है
लेकिन उसके लिए लाया है
नये अन्न की बालियाँ, फूल, जल और हवा

बूढ़ी माँ ! यह रोने का समय नहीं है
लड़की तुम्हारे आँगन में खड़ी नयी बेल है
लड़का नया पत्ता।