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सिर्फ पछतावा / नंद चतुर्वेदी

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अपने लिए ही
बचाया था
दुबारा
दुबारा बचाया था
प्रेम

पूरा नहीं होने दिया कुछ भी
डर कर
दूसरी बार न मिले
उस वृक्ष के नीचे
ठण्डी, बीतती छाया

दुबारा जाना था
जहाँ पेड़ ढूँढ़ते थे
अपनी पत्तियाँ
बादलों के दिन

पृथ्वी के पास से
कितना दूर चला गया था समुद्र

दुबारा नहीं जाने का
सिर्फ पछतावा बचा था।