Last modified on 5 जून 2012, at 13:26

स्यानी चिड़िया / विजेन्द्र

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 5 जून 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेन्द्र |संग्रह=भीगे डैनों वाला ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


बहुत दिनों बाद
आज फिर देखी
अपनी प्यारी चिड़िया
खिले गुड़हल-सी
स्यानी चिड़िया
चली गई क्या पीहर अपने
रूठ-राठ अपने अभिमानी नर से
या भाई का ब्याह रचाने
या सहेलियों के संग
सैरसपाटा करने
कहीं गई होगी
इससे क्या
मुझे नहीं दिख पाई
मेरी अपनी
प्यारी चिड़िया
पीली चौंच
पंजे सुर्ख़
अनोखी चिड़िया
अब पहले से कुछ अलग लग रही
नहीं देखती मुझको
आँखे भर कर
जैसे पहले टक-टक लखती थी
पूरी आँखों से
हिरनी जैसी चितवन
कहाँ छोड़ आई है
पहला अपना मन
रँगे वसन पहने है
पीले-लाल धारियों वाले
कसे अंग है
पहले से ज्यादा निखार है
मुँह पर नहीं अब
वैसा दुलार है
अब नहीं रही तू
उतनी व्याकुल
उतनी स्यानी
जनम रहा तुझमें भी
ज्ञान दुनिया का
निज की दुनिया से
बड़ी हो रही तेरी दुनिया।
नहीं चाहता कुछ भी तुझसे
बस कभी-कभी दिख जाना तेरा
सूनापन टल जाना मेरा
बस तेरा होना ही काफी है
ऐसी सुंदर बनी रहे तू
ऐसी ही सुंदर दुनिया हो
पूरे मन से दुआ करूँगा
निर्जन का मैं
शून्य भरूँगा।

2000