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माँ / कल्पना लालजी

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आज फिर एक बार
झनझना उठा ह्रदय का एक छोटा सा तार
कोयल फिर कूकी बागों में
कलियों ने ली अंगडाई
महकी मेरे मन की वादी
भंवरों ने भी दौड लगाई
ललचाई नज़रे उठी इन्द्रधनुष की ओर
धरती की सौंधी खुशबू से भीग चली थी भोर
मन मयूर उड़ने लगा जीवन में पहली बार
मेरे आँचल में आ सिमटा अब सारा संसार
गुदगुदा गया मुझे कोमल स्पर्श उसका
नन्ही सी इस बगिया में स्वप्न देखा था जिसका
घुघराली चंचल अलके चूमे उसका मुखडा
मेरे पलने में झूल रहा चाँद का इक टुकड़ा
किलकारी से अपनी गूंजा दिया आँगन मेरा
आगमन उसका लाया सतरंगी नया सवेरा
तुतलाते होठों से जब माँ कह मुझे पुकारा
माँ की ममता और प्रेम से धन्य हुआ जीवन मेरा