भाषा को लेकर भारत में
अक्सर यह प्रश्न सामने आता
यदि गोस्वामी तुलसीदास
न होते तो हिन्दी का भला क्या होता ?
उसी तरह मॉरिशस में भी
ऐसा ही प्रश्न पूछा जा सकता
यदि प्रोफेसर विष्णुदयाल
न होते तो हिन्दी का भला क्या होता ?
पण्डित जी ने भली भाँति यह
पाया समझा और अनुभव भी किया
अपनी भाषा का उद्धार
निश्चय ही जाति का उद्धार होता
अपनी भाषा के बल बूते
हिम्मत से जेल का दरवाज़ा खोला
स्वंय जेल की हवा खा कर
प्यार से जाति को मेवा खिलाया !
देश के कोने-कोने में जा कर
धर्म संस्कृति का झंडा लहराया
वेद उपनिषद और गीता
की शंख-ध्वनि से सभी को जगाया
ऐसे वीर ऐसे साहसी
ऐसे कर्मयोगी, त्यागी, वैरागी
बारम्बार जन्म नहीं लेते
विस्मृति के गर्भ में वे जाते नहीं !
अपने देशवासियों को
एकता सुख समृद्धि की वाणी दे कर
पूरे देश के इतिहास को
बदल कर ये शान्तिदूत अमर हो गए
वे शान्तिदूत अमर हो गए !