Last modified on 11 जून 2012, at 10:53

तलाशी / पंकज सिंह

Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:53, 11 जून 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वे घर की तलाशी लेते हैं

वे पूछते हैं तुमसे तुम्हारे भगोड़े बेटे का पता-ठिकाना

तुम मुस्कुराती हो नदियों की चमकती मुस्कान


तुम्हारा चेहरा दिए की एक ज़िद्दी लौ-सा दिखता है

निष्कम्प और शुभदा


(रचनाकाल:1976)