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भरथरी गायक / केशव तिवारी

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जाने कहाँ-कहाँ से भटकते-भटकते
आ जाते हैं ये भरथरी गायक

काँधे पर अघारी
हाथ में चिकारा थामे
हमारे अच्छे दिनों की तरह ही ये
देर तक टिकते नहीं

पर जितनी देर भी रुकते हैं
झांक जाते हैं
आत्मा की गहराईयों तक

घुमंतू-फिरंतू ये
जब टेरते हैं चिकारे पर
रानी पिंगला का दुःख
सब काम छोड़
दीवारों की ओट से
चिपक जाती हैं स्त्रियां

यह वही समय होता है
जब आप सुन सकते हैं
समूची सृष्टि का विलाप