चतुराई / अरविन्द श्रीवास्तव

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कँपकँपाती ठंड में आग की बोरसी
दहकती गर्मी में
ताड़ के पंखे
और अँधेरे में लालटेन हैं मेरे पास

लाता हूँ रोज़-रोज़ चोकर-खुद्दी
खिलाता हूँ साग-पात
घर में बकरियों-सी बेटियों को
गाय-सी पत्नी
और घोड़े-से बेटे को

और क्या कर सकता है चतुराई
एक अस्तबल का
फटीचर साईस !

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