इतिहास से पढ़ाई की और करता हूँ चाकरी
कविता की
करता हूँ चौका-बर्तन
झाड़ू-बहारू
रोपता हूँ फूल-पत्तियाँ
लगाता हूँ उद्यान
सौंपता हूँ उसे दिल-दिमाग
शौर्य-पराक्रम
सपने सारे के सारे
करता हूँ इतना ज़्यादा प्रेम
कि अक्सर सहमी,
सशंकित आँखों से
देखती है कविता मुझे !