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जब-जब थके हुए हाथों से छूट लेखनी गिर जाती है
'सूखा उर का रस-स्रोत' यह शंका मन में फिर जाती है,
तभी, देवि, क्यों सहसा दीख, झपक, छिप जाता तेरा स्मित-मुख-
कविता की सजीव रेखा-सी मानस-पट पर तिर आती है?