ओ पिया, पानी बरसा !
घास हरी हुलसानी
मानिक के झूमर-सी झूमी मधुमालती
झर पड़े जीते पीत अमलतास
चातकी की वेदना बिरानी।
बादलों का हाशिया है आस-पास
बीच लिखी पाँत काली बिजली की
कूँजों के डार-- कि असाढ़ की निशानी !
ओ पिया, पानी !
मेरा हिया हरसा।
खड़-खड़ कर उठे पात, फड़क उठे गात।
देखने को आँखें, घेरने को बाँहें,
पुरानी कहानी !
ओठ को ओठ, वक्ष को वक्ष--
ओ पिया, पानी !
मेरा जिया तरसा।
ओ पिया, पानी बरसा।
जालन्धर, 2 जुलाई, 1945