Last modified on 20 जुलाई 2012, at 23:46

नीला छाता / महेश वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 20 जुलाई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> कल स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कल सपने में आकर मेरा एक मृत दोस्त मुझे वैकल्पिक आकाश की आवश्यकता समझाता रहा।
उसने कपड़ों की अनिवार्य जगहों पर पत्ते बाँध रखे थे और शायद आदम की तरह दिखना चाहता था ।
मेरे घर में बाइबिल थी बचपन में;
मैं यह कहना चाहता था सपने में और इसमें गला रुँधने जैसी कोई बात भी नहीं थी तो भी मैंने नोट किया है कि सपने में मेरा गला अक्सर रुँधा ही रहता है ।

सपने में तो मैं दोस्त की लगभग नग्नता के रूपक ही में मारा गया लेकिन वैकल्पिक आकाश का उसका यह विचार अब भी मेरे पास है ।
पता नहीं क्यों मैं यह मानना ही नहीं चाहता कि इसे धूल, रौशनी और उदासी के बिना नहीं बनाया जा सकता ।
इसके बारे में सोचते हुए अधिक से अधिक मैं एक बड़े से नीले छाते के बनने में लगने वाले सामानों के बारे में सोच पा रहा हूँ ।